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Saturday, February 21, 2009
"पत्थर की है दुनिया, जज्बात नहीं समझती"
पत्थर की है दुनिया, जज्बात नहीं समझती,
दिल में है क्या वो बात नहीं समझती,
तनहा तो चांद भी है सितारों के बीच,
मगर चांद का दर्द बेवफा रात नहीं समझती।
1 comment:
समय चक्र
said...
बढ़िया अभिव्यक्ति पूर्ण रचना बधाई. लिखते रहिये .
February 21, 2009 at 9:22 PM
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"पत्थर की है दुनिया, जज्बात नहीं समझती"
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"जज्बातों को मेरे कोई ढूंढ के लाओं जरा"
"कितनी जल्दी ये मुलाकात गुजर जाती है"
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कुछ इस तरह...
तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई...
दो प्यार करने वालो को...
1 comment:
बढ़िया अभिव्यक्ति पूर्ण रचना बधाई. लिखते रहिये .
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